ख्वाहिशों की मौत-4
"गांव पहुंचते ही उनका लाडला शेरू (कुत्ता) जैसे गांव की सीमा के पास उनका इंतजार ही कर रहा था। भौं... भौं... भौं..... करते हुए उनकी तरफ दौड़ पड़ा और पैरों में कु...कु..... के स्वर के साथ लौटने लगा। उसे देखते ही जैसे उनका गुस्सा शांत हो गया और वह उसे बड़े प्यार से पुकारने लगे"। "जेब के कुछ बिस्किट निकाल उसे खिलाए, थोड़े समय उसके साथ खेलने के बाद जैसे उससे अपनी ही धुन में बात कर रहे थे",,कि तू ही तो है साथ रहेगा मेरे.......
"तू ही मेरा सच्चा साथी....... यह साला चौधरी मुझसे पहले बिना पूछे टिकट ले आया... हर जगह बाजी मार देता है। थोड़ा सोचने का भी मौका नहीं देता। जैसे वह अपनी गलती छुपाने का प्रयास करते रहे, जैसे वह वाकई कुछ सोचना चाहता था"। "स्कूल में जाकर पहले बात कराई। अरे मुझसे पूछ लेता एक बार कि मैं क्या चाहता हूं?? कितने मुश्किल से पढ़ाया मैंने, क्या जरूरत थी इसे इतने महंगे स्कूल में डालने की साला, मुझसे ज्यादा मेरे बच्चे को वह मेरा साला चौधरी जानता है क्या"??
"स्कूल में भी चार नंबर तो क्या ज्यादा आ गए, बिना पूछे गांव में मिठाई बटवा दी। भला क्या जरूरत इतना खर्चा करने की सब परीक्षा में पास होते वैसा दिनेश भी हो गया"। "हां, लेकिन दिनेश ने वाकई स्टेट में अव्वल स्थान हासिल किया था। गर्व महसूस करते हुए अपनी ही पीठ थपथपाने लगा और शेरू को जैसे वह दिनेश समझ रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे शेरू ने ही अच्छे नंबर लाए हो, और शेरू भी बराबर उसकी पुकार का जवाब कु..कु.... के स्वर दिया जा रहा था"।
"ना जाने किस जन्म की दुश्मनी निभा रहा है और फिर वह अपनी बात को जारी रखते हुए और कुछ कह पाता इसके पहले सामने से चौधरी को आता हुआ देख सकपका गए....... जैसे उनकी चोरी पकड़ी गई हो"। "चौधरी ने उन्हें देखते ही दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया और मुस्कुराकर छेड़ते हुए का कहा........श्रीमान कहां से चले आ रहे हो, सुना है तीन दिन से स्टेशन जा रहे थे और ससुरा स्टेशन मास्टर गायब थे"। अरे भाई ना भेजना हो तो ना भेजो.... वह बिचारे मास्टर की काहे नौकरी खा रहे हो। कम से कम सच ही बोल देते, कुछ दिन बाद चले जाना .....हां.... हां.... हां.....
"तारणहार गांव के मुखिया हो ना, सबकी नैया पार लगाने के लिए हम एक ही तो है, दुश्मन जो स्टेशन मास्टर की नौकरी खाए ,तुम्हारे भांजे की नौकरी छुड़वाए और तो और यह शेरू भी तुम ही दिए थे ना....कहते हुए शेरू को पटक दिया"। "वह भी क्रोध समझ कर पहले चिल्लाया फिर अचानक दूर जाकर निहारने लगा",,, वह भी जैसे चौधरी से इंसाफ मांग रहा हो। अरे जीजा काहे पटक दिए मालिक, कुछ बेचारे बेजुबान पर कैसा गुस्सा.........नाराजगी हमसे हैं तो हम पर उतारो..... कितना ख्याल रखता है वह तुम्हारा.... "सुबह से गांव की चौखट पर खड़ा था और तो और मेरे आज तो बुलाने पर भी नहीं आया,,क्या कुछ सिखा गए थे, वरना शेरू तो ऐसा नहीं करता"। देखो चौधरी......... बीच में ही ठोकते हुए, तुम देखो चौधरी... ज्यादा बोलो मत यार..... खुद तो पलट कर देखते नहीं, पूरे गांव का ठेका ले रखा है, और घर आने की सुध नहीं। (बाद बदलने की कोशिश करते हुए)कब आए थे?? आखरी दफा बताओ ना जरा?????
"क्या दिनेश के एडमिशन के समय...या....अरे नहीं जनाब, गलती हो गई हम तो भूल ही गए थे, कालेज भी आप ही दाखिला करवाए थे।अच्छा परिणाम भी तो आप ही लाए थे और शायद नौकरी फार्म भी आप ही भरे थे और इसलिए वो नौकरी भी गया"।
"हम तीन चार-दिन थोड़ा लेट क्या हो गया??टिकट भी ले आए......बड़ा एहसान है",, भैया तुम्हारा......अब तो बोलो तो दिनेश को तुम्हें गोद भी दे दे.....अफसर के पिता कहलाओगे, बड़ा मान होगा गांव में तुम्हारा....
क्रमशः.....
Gunjan Kamal
17-Nov-2023 05:46 PM
Nice part
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